Tuesday, 7 March 2017

"कही ये तुम तो नही ?"


सुनो जाना ...
बारीश की हर बुंद पर 
तुम्हारा नाम लिखना चाहता हूँ...
की हर बुंद बन जाए
मिश्री की डली 
और समंदर तक मिठा हो जाए...
याद है उस दिन
किनारे पे बैठे हुए थे हम दोनो 
और तुमने कहा था...
"समंदर मिठा क्युँ नही है ?"
कहकर छेड दिया था 
पानी की सतह को
जैसे वीणा पर सरगम छेड दी हो...
कुछ बुंदे मेरे चेहरे पर उडायी थी
तुमने और तब मैने कहा था...
मगर ये वाली तो मिठी लग रही है...
तुम थोडा शरमाई थी ...
बाद मे गुस्सा हो गई मुझपर
ये कहकर ...
हर बात बेवकुफो जैसी करते हो...
चाहे तुम मुझे आज भी बेवकुफ कह दो
हालाकी तुम आज नही हो 
कुछ कहने के लिए...
और मै तडफ रहा हूँ 
सुनने खातीर ...
तुम्हारी अस्थिया जहा बहायी थी 
उस जगहा पर मै नही जाता हूँ...
उस दिन कडी धूप थी 
मैरे आँखोमे भी 
और आसमान मै भी...
यकीनन तुम उडकर आसमान की तरफ ही निकल गयी होंगी...
क्युँकी मै जानता हूँ 
तुम्हे नमकीन संमदर पसंद नही है...
मै तुम्हे धुंडता रहता हूँ 
बादलोंमे 
और तुम्हारी राह देखता रहता हूँ ...
सुनो जाना...
आज बारीश हो रही है ...
जोरोसे ...

"कही ये तुम तो नही ?"

#rosswords