Thursday, 12 January 2017

पापा की पुरानी डायरी

मैंने पापा की पुरानी डायरी बहोत संभालकर रखी हुई है।
उसमें कोई कविता या कहानी तो नही है।
ना ही कोई आरजु लिखी है ना सपना ।
ऐसा तो नही मजदुर का कोई सपना नही होता ।
अपने परिवार की रोजमर्रा की जरुरते

पुरी करते करते शायद वो पिछे छुट जाता हो।
और फिर डायरीमें रह जाते है बस आकडे ।
बिजली,पानी,गॅस,बच्चोकी फिझ ऐसे कई सारे बिल
और इस खिचातानीमें खत्म हो जानेवाली छोटीसी तन्खा ।
ये सारे आकडे अपनेआपमें खुबसुरत कहानीयाँ है।
हर एडजस्टमेंट है त्याग,बलिदान और संघर्षकी कहानी।
बच्चोकी नादान जिद खातिर बचायी हुई पाइ पाइ
और मुश्किल वक्त आनेपर पत्नीके साथ बाटी हुई

 आधी रोटी है प्रेमकी सबसे बडी कहानी।
डायरीमें गर मिले सुखा गुलाब और पन्नोपर भाप बने
आसुओके निशान हो तो आसान है कहना के किसी प्रेमी की डायरी होंगी।
या अगर फुल,तितलीयोके डिझायनस् बिखरे पडे मिले
तो कह सकते है किसी नवयौवना की डायरी होंगी।
ऐसेही किसी मजदुर की डायरी पहचानी जा सकती है आकडोंसे।
और अगर गौर फर्मायेंगे कभी तो मिलेंगे 

मेहनत मश्शकतसे हाथोपर आये जख्मो-छालोके निशानभी । 


[ कहानीयाँ कागज,पेन,टाइपरायटर यहा तककि लेखककी भी मोहताज नही होती ]

-रोशन वानखडे
  #rosswords

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