यार तुम्हारी ये बडी बुरी आदत है।
~कौनसी?
-अरे जब कोई अपनी धुन मेँ खोया हुआ गुनगुना रहा हो तो उसे टोकना नही चाहिए।
हा जब परीस्थितीयाँ अनुकुल ना हो तो अलग बात है।
~क्या बात कर रही हो? मैने कब किसे टोका?
-एक बार हो तो बताऊ न।
मैने तुम्हे ऐसा करते हुए कई बार देखा है।
~कुछ भी। हा ये सच है कि मैँ अक्सर पुछ लेता हूँ गाने का नाम ,
लेकिन इसमेँ क्या बुराई है? कभी कभी लोग बहोत बुरे सूर लगाते है ,
या फिर कभी इतने धिमे कि पकड नही पाता हूँ ।
तो पुछ लेता हूँ । इसमेँ हर्ज क्या हैँ ?
-हर्ज ...अरे दोस्तोसे पुछ लो तो कोई बात नही ।
मगर अंजान शक्स तो गडबडा जाता है ना ।
~हा हा हा ... अरे लेकिन मैँ तो बस उस गीत को
जानने खातिर ऐसा करता हूँ। तकलिफ देने की ईच्छा से नही ।
-उस दिन का याद नही बसमेँ वो बुढे चाचाजी गुनगुना रहे थे ।
'थोडासा प्यार हुआ है थोडा है बाकी' ।
और तुमने पुछ लिया । मारे शरम से लाल टमाटर हो गये थे ।
~हा । याद आया । पुरानी यादोमेँ खोये हुये लग रहे थे ।
उन्होने कही रेडियो पर सुना होँगा ।
पता नही लेकिन वो इतना क्यो शरमा रहे थे ।
च्छा तो गुनगुना रहे थे ।
-शायद उनकी उम्र और गाना मॅच नही हो रहा था इसलिए।
~हम्म ...पता नही और कितने साल ये चलेँगा ।
जरा सोचो 'चार बोतल' 'काला चश्मा' 'चिकनी चमेली'
गाने वाले आजके छोटे छोटे बच्चे कल बुढे होकर क्या याद करेँगे
और क्या गाया करेँगे ।और सबसे अहम सवाल उसवक्त मौजुद
युवा पिढी किस तर्हाकी मानसिकतासे इसे देखेँगी ।
-ओह गॉड , रुको ... रुको ... कितना भागते हो ...
सवाल क्या था और बात कहा तक पहुच गयी ।
~शुरवात क्या थी ?
-अरे ...
~हा याद आया । मेरी बुरी आदत । मैँ कोशिश करुंगा । लेकिन मुश्किल है ।
(अपुर्ण)
@रोशन वानखडे
#rosswords
~कौनसी?
-अरे जब कोई अपनी धुन मेँ खोया हुआ गुनगुना रहा हो तो उसे टोकना नही चाहिए।
हा जब परीस्थितीयाँ अनुकुल ना हो तो अलग बात है।
~क्या बात कर रही हो? मैने कब किसे टोका?
-एक बार हो तो बताऊ न।
मैने तुम्हे ऐसा करते हुए कई बार देखा है।
~कुछ भी। हा ये सच है कि मैँ अक्सर पुछ लेता हूँ गाने का नाम ,
लेकिन इसमेँ क्या बुराई है? कभी कभी लोग बहोत बुरे सूर लगाते है ,
या फिर कभी इतने धिमे कि पकड नही पाता हूँ ।
तो पुछ लेता हूँ । इसमेँ हर्ज क्या हैँ ?
-हर्ज ...अरे दोस्तोसे पुछ लो तो कोई बात नही ।
मगर अंजान शक्स तो गडबडा जाता है ना ।
~हा हा हा ... अरे लेकिन मैँ तो बस उस गीत को
जानने खातिर ऐसा करता हूँ। तकलिफ देने की ईच्छा से नही ।
-उस दिन का याद नही बसमेँ वो बुढे चाचाजी गुनगुना रहे थे ।
'थोडासा प्यार हुआ है थोडा है बाकी' ।
और तुमने पुछ लिया । मारे शरम से लाल टमाटर हो गये थे ।
~हा । याद आया । पुरानी यादोमेँ खोये हुये लग रहे थे ।
उन्होने कही रेडियो पर सुना होँगा ।
पता नही लेकिन वो इतना क्यो शरमा रहे थे ।
च्छा तो गुनगुना रहे थे ।
-शायद उनकी उम्र और गाना मॅच नही हो रहा था इसलिए।
~हम्म ...पता नही और कितने साल ये चलेँगा ।
जरा सोचो 'चार बोतल' 'काला चश्मा' 'चिकनी चमेली'
गाने वाले आजके छोटे छोटे बच्चे कल बुढे होकर क्या याद करेँगे
और क्या गाया करेँगे ।और सबसे अहम सवाल उसवक्त मौजुद
युवा पिढी किस तर्हाकी मानसिकतासे इसे देखेँगी ।
-ओह गॉड , रुको ... रुको ... कितना भागते हो ...
सवाल क्या था और बात कहा तक पहुच गयी ।
~शुरवात क्या थी ?
-अरे ...
~हा याद आया । मेरी बुरी आदत । मैँ कोशिश करुंगा । लेकिन मुश्किल है ।
(अपुर्ण)
@रोशन वानखडे
#rosswords
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